त्रिउंड : धौलाधार पर्वत का शानदार ट्रैक

पहाड़ों पर पर्यटन की बात ही कुछ और है। मैदानी इलाकों के लोग तो हसरत भरी निगाहों से देखते हैं पहाड़ों को। यह दूसरी बात है कि पहाड़ों पर रोजमर्रा की जिंदगी काफी मुश्किल होती है। भोजन, पानी, रोजगार और जरूरी चीजों की व्यवस्था के लिए वहां के निवासियों को काफी ऊपर-नीचे आना-जाना पड़ता है। फिर भी, दो-चार दिनों के लिए घूमने गये लोगों को तो पहाड़ लुभाते ही रहते हैं। मानो बुला रहे हों- आओ न।

पिछले महीने मुझे धरमशाला जाने का मौका मिला। हिमाचल पर्यटन विकास निगम के धौलाधार होटल में एक कमरा पहले ही बुक करा लिया। धौलाधार नाम सुनते मैं रोमांचित हो उठा था। चंडीगढ़ से पंजाब के रास्ते हमने ऊना में प्रवेश किया और फिर सात घंटे की सडक़ यात्रा के बाद जा पहुंचे धरमशाला। अगले दिन बाजार में थोड़ी चहल-कदमी की। यहां-वहां विदेशी पर्यटक और बौद्ध भिक्षु नजर आने लगे। मन में बड़ी उत्सुकता थी मैक्लोडगंज देखने की।

On the way we met some foreign tourists
एक टैक्सी पकड़ मैं मैक्लोडगंज जा पहुंचा। हर तरफ तिब्बती लोग, तिब्बती बाजार, और विदेशी। वहीं एक ढाबे पर आलू का परांठा और दही खाने के बाद हम चल पड़े धरमकोट गांव की ओर, जहां विदेशी पर्यटक बड़ी तादाद में डेरा डाले रहते हैं। इस हिल स्टेशन के शांत वातावरण में उन्हें अत्यधिक सस्ते दामों पर रहने को कमरे मिल जाते हैं। यहां विपासना मेडिटेशन सेंटर, धम्मा शिकारा और तुशिता बौद्ध मेडिटेशन सेंटर मौजूद हैं। इससे थोड़ा ऊपर चलकर है गोलू देवी का मंदिर। कार को एक ओर पार्क कर हम आगे बढ़े ही थे कि बूंदाबांदी शुरू हो गयी।

ट्रैकिंग के बारे में सुना तो बहुत था, परंतु खुद ट्रैङ्क्षकग पर निकलने का यह मेरा पहला अनुभव था। ड्राइवर टिंकू मेरे साथ ही हो लिया। मैंने अपने  बैग में काजू, बादाम, बिस्कुट, चॉकलेट और पानी की बोतल ले ली थी। ऊपर निकलने से पहले मैंने रात में ही गूगल पर अन्य पर्यटकों के अनुभव पढ़ लिये थे। पहले मुझे लगा कि दस किलोमीटर की चढ़ाई मेरे बस की बात नहीं है, फिर हिम्मत करके चल पड़ा। बेमौसम बरसात ने मेरी खुशी और बढ़ा दी। जितना ऊपर जाते, मैक्लोडगंज का दलाई लामा मंदिर और धरमशाला का क्र्रिकेट स्टेडियम उतना ही छोटे होते जा रहे थे।

करीब चार किलोमीटर की सीधी चढ़ाई के बाद चाय का एक ढाबा दिखाई दिया। चाय पीकर हम फिर चल पड़े। रास्ते में दो-तीन विदेशी पर्यटक मिले। थकान बढ़ रही थी, लेकिन ऊपर चढ़ते जाने की ललक भी थी। इच्छा थी यह देखने की कि आखिर कैसा लगता है चोटी पर। ऊबड़-खाबड़ पत्थरों वाले ट्रैक पर करीब 10 किलोमीटर की सीधी और थकाने वाली चढ़ाई के बाद अंतत: हम टॉप पर पहुंच ही गये। वाह, क्या नजारा था। बर्फ से ढंका धौलाधार पर्वत एकदम सामने था। मानो हाथ बढ़ाकर छू लो। एक दर्जन से अधिक विदेशी पर्यटक वहां पहले से ही मौजूद थे। समुद्रतल से त्रिउंड की ऊंचाई करीब तीन हजार मीटर यानी दस हजार फीट है।

Narvijay on Triund Trek ahead of McLeodganj in Himachal Pradesh
धरमकोट के ग्रामीणों ने त्रिउंड पर तीन कामचलाऊ ढाबे बना रखे हैं, जहां चाय और गरमागरम मैगी आसानी से मिल जाती है। पास में ही वन विभाग का एक रैस्ट हाउस है। वहां केअर टेकर से बातचीत करने पर पता चला कि ऊपर बिजली और पानी  की किल्लत है। पानी दो किलोमीटर नीचे एक झरने से लाना पड़ता है। वहां मौसम अचानक से बदल जाने की बात सुनी थी। हुआ भी ऐसा ही। आधे घंटे के अंदर ही बूंदाबांदी और फिर ओले गिरने लगे।

अंधेरा होने से पहले हमें नीचे पहुंचना था। सो बरसात में ही चल पड़े। बाकी पर्यटक पहले ही खिसक लिये थे। पत्थरों पर पांव फिसल रहे थे। बैग और कपड़े तरबतर हो गये थे। गिरते-पड़ते तीन घंटे बाद फिर से हम अपनी कार में थे। पांव उठाना मुश्किल हो रहा था। थकान से बुरा हाल था। उंगलियां ठंड से जम गयी थीं। परंतु, कसम से मजा आ गया। हमने पहाड़ों की एक ऊंची जंग जो जीत ली थी। सचमुच ही त्रिउंड उत्तर भारत का एक शानदार टै्रक है।


Contact: Narvijay Yadav, E: narvijayindia@gmail.com

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