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बदायूं का पेड़ा जो छह महीने तक फ्रेश रहता है

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बदायूं का कोई शख्स इलाहाबाद, दिल्ली या हरिद्वार कहीं जाये, तो अक्सर लोग उससे मम्मन खां के पेड़े की फरमाइश कर बैठते हैं। इसीलिए बदायूं वासी अपने रिश्तेदारों से मिलने कहीं बाहर जाते हैं तो पेड़े का डिब्बा साथ रखना नहीं भूलते। मेरे बचपन के दोस्त आलोक सिन्हा ने बताया कि लंदन व अन्य देशों से उनके रिश्तेदार जब बदायूं आते हैं तो पेड़ा चाव से खाते हैं। वापस जाते समय वे एक-दो डब्बा नहीं, पूरे 15 किलो के कार्टन पैक कराके ले जाते हैं। लंदन वाले रिश्तेदार ने कहा कि उनके गोरे दोस्त पेड़ा खिलाने की मांग करते हैं। ब्राउन रंग का यह पेड़ा उनके यहां छह माह तक चलता है। इसे खोए को भूनकर और ऊपर से बूरा छिड़क कर खास विधि से तैयार किया जाता है।  बदायूं : पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन कस्बाई शहर, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब मिलकर रहते हैं। यहां के एक बाशिंदे थे मम्मन खान। उन्होंने 193 साल पहले, यानी वर्ष 1825 में, पेड़ा बनाने की शुरुआत की। उनका पेड़ा इतना मशहूर हुआ कि दुकान वाले चौराहे का नाम ही मम्मन चौक पड़ गया, हालांकि अब इसे सुभाष चौक भी कहा जाता है। चौराहे के एक कोने पर पेड़े की अनेक दुकानें हैं, और ह