शानदार रहा न्यूज इंडस्ट्री में 33 वर्षों का सफर


नरविजय यादव: पत्रकारिता के कीड़े ने मुझे बचपन में ही काट लिया था। फिर यह कीड़ा बड़ा होता चला गया। एक दिन आटे की थैली में बदायूं संदेश अखबार का पता देखा तो जा पहुंचा उसके दफ्तर। विज्ञान पर लिखने लगा। अनेक अखबारों में छिट-पुट लेखन जारी रहा। नवीन वैज्ञानिक सोच के लिए जब उत्तर प्रदेश स्तर पर पहचान बनी तो धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, विज्ञान प्रगति से लेकर नंदन तक में मेरे बारे में खबरें छपीं। वहीं से फ्रीलांस पत्रकारिता का चस्का लग गया।


पिताश्री चाहते थे कि मैं प्रशासनिक सेवा में जाऊं, ताकि गांव के लिए सड़क बनवा सकूं। इसी नाते उन्होंने मुझे इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेज दिया। परंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था। न वैज्ञानिक बना, न प्रशासनिक अधिकारी। मन तो रमा था पत्रकारिता में। एक ही धुन थी कि मीडिया मैन बनना है। मीडिया का कीड़ा इतना ताकतवर था कि बीएससी की कक्षा में बैठने की बजाय पत्रकारिता विभाग जा पहुंचता था, जबकि उस वक्त मैं वहां के पीजी कोर्स के लिए पात्र नहीं था। रोज ही नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका प्रेस के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहता था।

पढ़ाई पूरी करके बदायूं लौटा, तब कई संपादकों को पत्र लिखे। दैनिक भास्कर इंदौर से महाप्रबंधक कैप्टन पीसी चौहान का बुलावा आया। तनख्वाह खास नहीं थी। पर मन में अपार खुशी थी। पिताश्री नाराज हो गये। कहने लगे यह भी कोई काम है। लेकिन मेरे सिर पर तो जुनून सवार था, सो 16 जुलाई 1988 को मैं इंदौर जा पहुंचा। रात को दैनिक भास्कर के दफ्तर में ही सो जाता था। फिर कार्टूनिस्ट लहरी के सहयोग से एक हमउम्र पत्रकार ज़फर खान के साथ किराये पर एक रूम ले लिया। ज़िंदगी मजे में चलने लगी। 

भास्कर में शुरुआत में मुझे डाक एडीशन की डेस्क पर लगाया गया। सागरमल मौला जी इन्चार्ज थे। कीर्ति राणा जी भी वहीं थे। फिर प्रूफ पढऩे की जिम्मेदारी मिली। तब प्लास्टिक की गैली से प्रूफ चैक होता था। फुर्सत मिलते ही मैं फर्स्ट पेज की डेस्क पर जा बैठता। वहां दुबे जी इन्चार्ज थे। मैं उनसे अंग्रेजी की कॉपी लेकर खबरें लिखता। वे मेरी लगन देखकर बहुत प्रभावित हुए। तब संपादक थे शाहिद मिर्जा। कुर्ता-पाजामे में बहुत जंचते थे। उनके बाद डॉ. ओम नागपाल जी संपादक बने। उनके साथ खूब जमी। उन्होंने मुझे विद्वानों की महफिल कॉलम तैयार करने की जिम्मेदारी दी। उनके कहने पर मैंने एमए अंग्रेजी में एडमीशन ले लिया।

मैं एमवी कामथ की किताब - प्रोफेशनल जर्नलिज्म ध्यान से पढ़ चुका था। उसमें फ्री प्रेस जर्नल का जिक्र था। बंबई के सबसे पुराने अंग्रेजी अखबारों में से एक। खिड़की से फ्री प्रेस का दफ्तर दिखता, तो मन में तरंग उठती, काश मैं वहां होता। भास्कर में ढाई महीना ही हुआ था। दुबे जी के प्रोत्साहन से फ्री प्रेस चला गया टैस्ट देने। वहां केरल के टीके देवसिया एडिटोरियल हेड थे उन दिनों। ट्रेनी के रूप में नियुक्ति मिल गयी। यह सब बहुत रोमांचक था। वहां राकेश शर्मा, दीपक शिंदे, अभिलाष खांडेकर, अशोक वानखेड़े और अशोक थपलियाल जैसे वरिष्ठ पत्रकारों का संगसाथ मिला। तब टाइपराइटर पर खबरें टाइप हुआ करती थीं। चार माह बाद श्रवण गर्ग जी संपादक बन कर पहुंचे। उन्हें मेरा काम पसंद आया और रीजनल न्यूज डेस्क का जिम्मा मिल गया। समय मिलता तो साइंस एंड टैक्नोलॉजी की रिपोर्टिंग भी कर लेता था। साइंस पर एक कॉलम भी लिखा - टॉकिंग पॉइंट्स। तब कल्पेश याज्ञनिक इंदौर यूनिवर्सिटी कवर करते थे और एसआर सिंह सिटी न्यूज डेस्क के चीफ थे। 

अगला पड़ाव रहा दिल्ली, जहां राष्ट्रीय सहारा और कुबेर टाइम्स अखबारों की शुरुआती टीमों में अहम रोल रहा। राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारिता करने का सौभाग्य मिला। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा डिफेंस, रेलवे, साइंस और हैल्थ मिनिस्ट्री जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय कवर किये। संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक आना-जाना रहा। वाजपेयी सरकार का बनना-बिगडऩा देखा। दोनों ही अखबारों में माधवकांत मिश्र जी संपादक थे। कुछ माह दिल्ली प्रेस में भी बिताये। चंडीगढ़ में दैनिक भास्कर का फीचर विभाग संभाला। उड़ान पत्रिका का छह वर्ष तक संपादन किया। बिजनेस भास्कर शुरू होते वक्त भोपाल बुलाया जा रहा था। लेकिन मेरा मन बदल गया और भास्कर की नौकरी छोड़ दी। स्पेक्ट्रम पीआर नामक अपनी कंपनी स्थापित करके लाइफ स्टायल, फिल्म और मेडिकल पीआर में जगह बनायी। अपनी कंपनी चलाते 13 वर्ष हो गये हैं। अपनी कुछ समाचार वेबसाइटें भी चला रहा हूं। प्रसन्न और सहज जीवन जीने पर ज़ोर देता हूं। मेरे लिए यह सब एप्लाइड जर्नलिज्म है। तेंतीस वर्षों की इस मजेदार यात्रा के सभी सहयात्रियों-सहयोगियों व मित्रों का हृदय से धन्यवाद।


Twitter @NarvijayYadav  / Email: narvijayindia@gmail.com

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