संदेश

अगस्त, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दही-जलेबी की तरह गायब है भाई-बहन का रिश्ता !

चित्र
  इंदौर जाऊं और दही-जलेबी-पोहा न खाऊं, ऐसा कैसे हो सकता है? रक्षाबंधन आ गया। सगे भाइयों के राखियां बंधेंगी। मुंहबोले भाइयों का जमाना तो गया। अब न कोई बनना चाहता है, न बनाना। कम से कम टीवी देख कर तो यही लगता है। रियेलिटी प्रोग्राम हों या कपिल शर्मा जैसे शो, सब यही दिखाते हैं कि किसी लड़की को बहन कहना बेकार बात होती है। यहां तक कि, लड़िकयां भी नहीं चाहतीं किसी को भाई बनाना। यह नये जमाने का शगल है कि भाई-बहन का मुंहबोला रिश्ता दही-जलेबी के नाश्ते की तरह दुर्लभ हो गया है। एक वजह यह भी है कि आज के लड़कों में दम नहीं होता है भाई बनने का। फुस्स टाइप के पटाखे क्या खाके बनेंगे किसी लड़की के भाई? उसके लिए दमखम चाहिए होता है। बहन मुश्किल में हो तो रक्षा करने के लिए। करेक्टर चाहिए होता है। संस्कार चाहिए होते हैं। आत्म-अनुशासन चाहिए होता है। मर्दानगी चाहिए होती है महिलाओं का सम्मान करने के लिए। यह सब होता नहीं, तो पिचकू लड़के ब्वॉय फ्रेंड बनके ही खुश हो लेते हैं। लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार घटिया और ओछे किस्म के लोग करते हैं। यह चरित्रहीनता की पराकाष्ठा है। चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित चित्रकार

खुश रहने के कितने पैसे लगते हैं?

चित्र
वर्तमान में जिएं  और   प्रसन्न रहें  : भिक्खू संघसेना एक पत्रकार मित्र की फेसबुक पोस्ट देखी तो मैं सोच में पड़ गया। उनकी पत्नी ने लिखा था - ' एक अच्छी फैमिली फोटो , क्योंकि हम अक्सर एक साथ समय नहीं बिता पाते हैं और एक शादी के मौके पर हम आज इतने खुश हैं , जितना पहले कभी नहीं थे … बंगाली शादियां होती ही ऐसी हैं , वे आपको बेहद खुश कर देती हैं। ' मित्र पत्रकार हैं , तो जाहिर है कि परिवार को कम ही समय दे पाते होंगे। पत्रकारों का जीवन होता ही ऐसा है। दुनिया भर की खुशियों और गम में शरीक होते हैं , पार्टियों में जाते हैं , देश - विदेश भी घूम आते हैं , लेकिन अकेले ही। न तो इतनी छुट् ‌ टी मिल पाती है , न इतने पैसे होते हैं कि मनचाहे ढंग से परिवार के साथ घूम - फिर सकें। कहीं दूर चले भी गये तो वापस लौटने पर कुर्सी मिलेगी या छिन जायेगी , इसकी धुकधुकी अलग से लगी रहती है। शाम दफ्तर में बीतती है और पूरा शहर जब सो जाता है , तब घर वापस