पहाड़ से भी मुश्किल होता है पहाड़ा
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में मेरे गांव 'पलई' की हमारी एक यात्रा पंद्रम- पंद्रा , दूनी तीस, तिंयां पैंतुल्लाह, चौका साठ, पना पिचत्तर, छक्का नब्बे, सत्ते पांच, अट्ठे बीस, नेमा पैंतीस, धांईं पचास ! आज की गूगल जैनेरेशन क्या जाने पहाड़ा क्या होता है। स्कूलों में इसे अब टेबल कहा जाता है। लेकिन बच्चों को आज के तथाकथित 'मॉडर्न एवं महान' स्कूल हिंदी में गिनती नहीं सिखाते हैं । फिर सब्जी खरीदते समय या टीवी पर समाचारों में छप्पन, तिरानवे या तिहत्तर जैसी संख्याएं सुनकर नये बच्चों का सिर चकराता है कि यह कौन से ग्रह की भाषा बोली जा रही है। भारत में बड़े हो रहे आज के किशोरों और युवाओं की यह एक बड़ी कमजोरी है। बड़ी तकलीफ झेलनी पड़ती थी हमें पहाड़ा याद करने में। चार दशक पहले पहाड़ा याद करना जरूरी होता था। इसके बिना तो गुजारा ही नहीं था। गणित के सवाल हल करने के लिए पहाड़ा याद होना आवश्यक था। शायद चौथी-पांचवी कक्षा से ही पीछे पड़ गया था पहाड़ा। पहाड़ से भी मुश्किल होता था पहाड़ा। पिताजी अध्यापक थे। पहाड़े के मामले में तो वे किसी कर्नल जैसा रुख अपनाते थे। बिजली चली जाती थी तो कुछ