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प्रधानमंत्री के नाम बेघर डॉग्स का एक खुला पत्र

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प्रिय प्रधानमंत्री जी,  आप हमारे भी अभिभावक हैं। हम वोट भले न डाल पाते हों, लेकिन संविधान ने हमें जीवन का अधिकार दिया है। सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली सहित कई राज्यों के उच्च न्यायालयों ने हमारे हक में अनेक फैसले भी सुनाये हैं। बावजूद इसके, हाल के वर्षों में हम भूखे-प्यासे मर रहे हैं और हमारा जीवन संकट में है। आशा है, आप हमारी व्यथा पर ध्यान देंगे।   जानवरों पर अत्याचार संबंधी कानून पुराने हो चुके हैं। 1960 में बने कानूनों में संशोधन कर उन्हें अत्यधिक कठोर बनाने की आवश्यकता है। हमें मारने वालों की सजा पांच साल से बढ़ा कर 15 साल होनी चाहिए। बाकी जानवरों और हममें एक बड़ा फर्क है। अन्य जानवरों को आप जंगल में छोड़ सकते हो, लेकिन अपने भोजन-पानी और संरक्षण के लिए हम पूरी तरह से मनुष्यों पर ही आश्रित हैं। हम एक निश्चित इलाके में ही रहते हैं। उससे बाहर निकलते ही हमारे साथी ही हम पर हमला कर देते हैं। हम अपने इलाके के घरों से मिलने वाली खुराक पर ही जीवित रहते हैं। अब वो भी नसीब नहीं हो रही है।   शहरीकरण और सडक़ों के विस्तार ने हमारा जीवन संकट में डाल दिया है। न हमारे बैठने का ठिकाना

चंडीगढ़ के नजदीक कभी समंदर लहरें मारता था !

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कल मुझे प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्या के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लद्दाख में, दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर बोरिंग करने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। उन्हें वाटरमैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। जमीन के नीचे पानी कहां पर मिलेगा, यह पता लगाने में डॉॅ. रितेश का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। लेह स्थित महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर के परिसर में उन्हीं के लगाये बोरिंग से पानी आता है। लेह और कारगिल में सैन्य छावनी क्षेत्र में भी डॉ. रितेश के ही लगाये बोरिंग आज भी पानी दे रहे हैं। लद्दाख में तो उन्होंने कई वर्षों तक बहुत अधिक कार्य किया है। सुबाथू-धरमपुर मार्ग पर उनके लगाये अनेक बोरिंग निरंतर पानी दे रहे हैं, जबकि सरकारी बोरिंग कबके फेल हो गये। पिछले कुछ समय से डॉ. रितेश कसौली व धरमपुर क्षेत्र के जीवाश्मों का विस्तार से अध्ययन कर रहे हैं। शिमला हाईवे पर यह स्थान चंडीगढ़ से महज घंटे भर की दूरी पर है। कसौली हिल स्टेशन क्षेत्र में उन्हें वृक्षों के और धरमपुर-सुबाथू रीजन में समुद्री सीपियों के अनगिनत जीवाश्म (फॉसिल) मिले हैं। सीपियां समुद्र में