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हर दिन नया दिन, हर दिन जन्मदिन

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क्रिसमस पर आज मुझे अपना स्कूल याद आ रहा है। सत्तर के दशक में बदायूं में मिशन स्कूल सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता था। यह एक क्रिश्चियन स्कूल था, जिसमें पांचवीं तक कोएड था। छठी से दसवीं तक की कक्षाएं सिर्फ लड़कियों के लिए थीं। हमारा पहला पीरियड बाइबल रीडिंग का होता था। उससे पहले प्रार्थना होती थी, जिसमें लड़कियों का एक समूह हिंदी में प्रार्थनाएं गाता था। बाकी बच्चे उनके साथ-साथ गाते थे। एक प्रार्थना अक्सर गायी जाती थी- 'हर दिन नयी आशा का संदेश सुनाता है। आकर जो गुजर जाता, वापस नहीं आता है।' उस हॉल का माहौल कुछ-कुछ गिरिजाघर जैसा था। एक स्टेज और पीछे तक अनगिनत बैंचें।  सोते वक्त किसे पता रहता है, कि वो कहां है और उसके इर्द-गिर्द क्या हो रहा है। शरीर की कुछ आवश्यक क्रियाओं के अलावा बाकी सब सिस्टम शांत हो जाते हैं। सोया हुआ व्यक्ति काफी हद तक मृतक समान ही होता है। तभी तो सोते-सोते कई बार हादसों में लोगों की मौत हो जाती है। यानी सोते समय हमारी रक्षा सिर्फ ईश्वर करता है। सलमान खान हो, या दारा सिंह, सोते समय तो हर कोई राजपाल यादव जैसा ही हो जाता है। यानी रोज जब हम जागते हैं, त

दिन और वर्ष नहीं, पल महत्वपूर्ण होते हैं

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आधी सदी का गवाह हो गया हूं आज मैं। संभवत: हम 1964 या कहें कि 60 के दशक में जन्मे लोग किस्मत वाले हैं। हमने अविकसित भारत देखा। विकसित होता भारत देखा। और अब तकनीकी प्रगति से वाकिफ होते हुए गतिशील भारत हमारे सामने है। आने वाले कल को संवारने के कई मौके हमारे हाथों में हैं। हमने ऐसे बहुत सारे पल देखे, जिन्हें आज के टीनएजर बच्चे समझ ही नहीं पाएंगे।  महाबोधि लद्दाख वाले गुरुजी भिक्खू संघसेना जी ने अपने एक ध्यान शिविर में बताया था कि जीवन को वर्षों में मापना उचित नहीं है। व्यक्ति की असली आयु तो उन पलों को जोड़ कर बनती है जो उसने मानव सेवा, प्राणी सेवा, प्रकृति सेवा और उपयोगी कार्यों में लगाये। जिंदगी का अधिकांश समय तो सोने, नित्य कर्म करने, भोजन और यात्रा करने में व्यतीत हो जाता है। इस व्यर्थ हुए समय को आयु में कैसे जोड़ सकते हैं आप। इस लिहाज से मेरी आयु शायद उन्नीस-बीस वर्ष ही बैठेगी। आप भी अपने उपयोगी पलों की गणना करके देखिए। Sindhu Darshan, a few kilometers away from Leh in Ladakh (Jammu & Kashmir) कुछ ही पलों पूर्व लखनऊ एयरपोर्ट से श्रद्धेय माधवकांत मिश्र जी (महामंडलेश्