हर दिन नया दिन, हर दिन जन्मदिन
क्रिसमस पर आज मुझे अपना स्कूल याद आ रहा है। सत्तर के दशक में बदायूं में मिशन स्कूल सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता था। यह एक क्रिश्चियन स्कूल था, जिसमें पांचवीं तक कोएड था। छठी से दसवीं तक की कक्षाएं सिर्फ लड़कियों के लिए थीं। हमारा पहला पीरियड बाइबल रीडिंग का होता था। उससे पहले प्रार्थना होती थी, जिसमें लड़कियों का एक समूह हिंदी में प्रार्थनाएं गाता था। बाकी बच्चे उनके साथ-साथ गाते थे। एक प्रार्थना अक्सर गायी जाती थी- 'हर दिन नयी आशा का संदेश सुनाता है। आकर जो गुजर जाता, वापस नहीं आता है।' उस हॉल का माहौल कुछ-कुछ गिरिजाघर जैसा था। एक स्टेज और पीछे तक अनगिनत बैंचें। सोते वक्त किसे पता रहता है, कि वो कहां है और उसके इर्द-गिर्द क्या हो रहा है। शरीर की कुछ आवश्यक क्रियाओं के अलावा बाकी सब सिस्टम शांत हो जाते हैं। सोया हुआ व्यक्ति काफी हद तक मृतक समान ही होता है। तभी तो सोते-सोते कई बार हादसों में लोगों की मौत हो जाती है। यानी सोते समय हमारी रक्षा सिर्फ ईश्वर करता है। सलमान खान हो, या दारा सिंह, सोते समय तो हर कोई राजपाल यादव जैसा ही हो जाता है। यानी रोज जब हम जागते हैं, त