संदेश

2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गोबर के कन्हैया, अन्नकूट के पहाड़

चित्र
गोवर्धन पूजा। अन्नकूट। आज है। कन्हैया ने गोवर्धन पर्वत उठाया। छोटी उंगली पर। भारी बारिश से प्रजा की रक्षा हेतु। भागवत पुराण में वर्णन है। वल्लभ सम्प्रदाय के लिए पूजा का खास दिन।  Lord Krishna raising the Govardhan Parvat on his finger. (Source: Unknown) अन्नकूट यानी प्रभु को भोजन के पहाड़ समर्पित करना। धन्यवाद करने की एक विधि। आपने हमें भोजन दिया, उसके लिए धन्यवाद। स्वामीनारायण सम्प्रदाय के लिए महत्वपूर्ण दिन। गौड़ीय सम्प्रदाय के लिए भी।  हम भी बनाते थे गोबर से भगवान के विविध रूप। आंगन में सजाते थे। गांवों में अब भी होता है ऐसा। बाजार की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। होगी भी क्यों। गोबर कितने में बिकेगा। शॉपिंग माल में तो हर्गिज नहीं। फिर क्यों मनायें। इसीलिए शहरी लोग कम ही जानते हैं इसे।  मुझे याद है। मां गोबर से घर लीपती थीं। गांव के घर का कच्चा फर्श। पीली मिट्टी मिलाते थे गोबर में। फर्श पर निखार आ जाता था। पीला मिट्टी लेने मैं भी जाता था बड़ों के साथ। बैलगाड़ी में बैठकर। अच्छे दिन थे वे। सरल जीवन। परम्पराओं का निर्वाह। आपसी मेलजोल। भाईचारा। याद है सब। परम्पराएं हमें जीव

तालियां बजा बजा कर लेते हैं शिक्षा

चित्र
दलाई लामा मंदिर। धरमशाला के पास मैक्लोडगंज में। सीक्योरिटी चैक के दौरान चटाक-चटाक आवाजें आयीं। लगा कोई कुश्ती जैसा खेल चल रहा है। जिज्ञासा अंदर पहुंच कर शांत हुई।  मंदिर ग्राउंड में बीसियों बौद्ध भिक्षु एक-दूसरे के सामने खड़े होकर तिब्बती भाषा में कुछ बहस कर रहे थे। कुछेक सेकंड मंत्र सा पढ़कर खड़ा भिक्षु बैठे साथी के चेहरे के पास जोर से ताली बजा रहा था। ऐसा लग रहा था, मानो वो हमला कर रहा हो।  धार्मिक वाद-विवाद की यह तिब्बती परंपरा है। कुछ महिला भिक्षु भी ऐसा कर रही थीं। अनेक विदेशी तिब्बती भिक्षु भी इस रिचुअल में शामिल थे। काफी तामझाम के साथ एक विदेशी फिल्म टीम भी वहां इस सब की शूटिंग कर रही थी। दिलचस्प नजारा था। मैं वहां कोई दो घंटे तक रहा। मेरे लिए यह सब अजीब था। अच्छा लगा।