लद्दाख : ठंडे रेगिस्तान में सडक़ का सफर

लद्दाख यानी जन्नत। एक ख्वाब। छोटा तिब्बत। दुनिया की छत। जम्मू-कश्मीर का बड़ा हिस्सा। बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण ठिकाना। पाकिस्तान व चीन का निशाना। आम हिंदुस्तानी जिसके बारे में ठीक से नहीं जानते। जहां सडक़ें सात माह तक बर्फ जमी होने के कारण बंद रहती हैं। जहां हिमालय की बर्फीली चोटियां एकदम पास होती हैं। सडक़ के दोनों ओर जहां सिर्फ बर्फ की दीवारें होती हैं। बरसात में जहां बारिश नहीं होती। जहां पहाड़ों पर घास का एक तिनका तक नहीं दिखता। जिसे लोग ठंडा रेगिस्तान कहते हैं। जहां चाय याक के दूध या फिर डिब्बाबंद दूध से बनती है। आकाश जहां नीला दिखता है। ऑक्सीजन जहां विरल होती है। जहां पर्यटक तेज चलते ही हांफने लगते हैं। वो लद्दाख।


खबर है कि श्रीनगर-लेह राजमार्ग फिर बंद हो गया है। भूस्खलन की वजह से यातायात ठप है। कुछ दिन लग जाएंगे रास्ता साफ करते। काफी संख्या में लोग श्रीनगर से कारगिल होते हुए लेह पहुंचते हैं। सडक़ मार्ग से लेह जाने का यह एक सुगम रास्ता है। तीन दिन लग जाते हैं। वहां रात में सडक़ यात्रा की अनुमति नहीं होती। रात में विश्राम करना पड़ता है। परंतु यह यात्रा होती बेहद रोमांचक है। विशाल पहाड़। गहरी बहती नदी। रहस्यमय घाटियां।

लेह जाने का दूसरा रास्ता मनाली होकर है। मनाली से 40 किलोमीटर दूर है रोहतांग पास। इस ऊंचे दर्रे को पार करके  शुरू होती है रहस्यमयी वादियों की रोचक यात्रा। बताते हैं मनाली से जाने वालों की तबियत खराब होने का खतरा अधिक रहता है। श्रीनगर वाला रास्ता इस मामले में अच्छा है। वो सडक़ भी बेहतर है। चंडीगढ़ से मनाली होकर लेह पहुंचने में चार दिन लगते हैं, जबकि वाया श्रीनगर तीन दिन लगते हैं। रास्ते में टेंटों में रुकना पड़ सकता है। 


हवाई जहाज से लेह जाने वाले लोग अच्छे नजारे नहीं देख पाते। बेहतरीन नजारों के लिए जरूरी है कि आप सडक़ मार्ग से जाएं। विमान से लेह जाने वालों को चाहिए कि वे नुब्रा वैली, पैंगांग लेक या फिर दूर-दराज मोनेस्टरी देखने के लिए सडक़ मार्ग से घूमें-फिरें। लेह से पांच घंटे की दूरी पर है नीले पानी वाली पैंगांग लेक। दिन के दिन वापस लेह लौटा जा सकता है। या फिर रात को उसी इलाके में टेंट में रुका जा सकता है। नुब्रा वैली जाने वालों को तो रात वहीं किसी होटल या गेस्ट हाउस में बितानी चाहिए। पिछले साल गायक सोनू निगम ने नुब्रा वैली में अपने इच्छापूर्ति गायत्री मंत्र वीडियो को शूट किया था। उनके साथ महाबोधि रेजीडेंशियल स्कूल-लेह के बच्चे भी गये थे। 

सडक़ मार्ग से लद्दाख घूमते हुए विचित्र अनुभव होते हैं। अक्सर आपकी गाड़ी के आगे-पीछे दूर तक कोई और वाहन नहीं दिखता। सिर्फ निर्जन सडक़, रूखे पहाड़, और अकेले आप। कीड़े-मकोड़े नहीं दिखते। जानवर नहीं दिखते। बस कहीं-कहीं भेड़-बकरी या याक नजर आ जायेंगे। या फिर सन्नाटे में कहीं अकेला बैठा कोई कु त्ता। या फिर पहाड़ की किसी ऊंची चोटी पर भराल भेड़ें नजर आ जाएंगी। लद्दाख में स्नो लैपर्ड पाये जाते हैं। वे छिप कर रहते हैं। 


पैंगांग लेक के मार्ग में मार्मोट नामक बड़े मजेदार जानवर दिखाई दे जाते हैं। बड़े खरगोश और किसी गिलहरी जैसे दिखने वाले ये जानवर बड़े भोले होते हैं। घास के मैदानों में बिल बनाकर रहते हैं। ये बिस्कुट या चॉकलेट के लालच में पर्यटकों के नजदीक चले जाते हैं। सडक़ निर्माण में लगे मजदूर कई बार इन्हें मारकर खा जाते हैं।

लद्दाख एक अनूठा प्रदेश है। इसका क्षेत्रफल ज्यादा है और आबादी कम। रोमांच के शौकीन पर्यटक लद्दाख में अक्सर बुलेट मोटर साइकिलों से ग्रुप बनाकर यात्रा करते हैं। रास्ते में कुछ सैलानी आपको साइकिल पर अकेले ही सफर करते दिख जाएंगे। ऐसी अनूठी भौगोलिक जगह आपको भारत में शायद ही कहीं और मिले। 





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बदायूं का पेड़ा जो छह महीने तक फ्रेश रहता है

शानदार रहा न्यूज इंडस्ट्री में 33 वर्षों का सफर

सोशल मीडिया पर रुतबा कायम रखना आसान नहीं