दिल ढूंढता है... फिर वही, फुरसत के रात-दिन
हिमाचल की वादियों में, पहाड़ों के बीच, एकांत में, खिड़की से बाहर देखते हुए, मन में न जाने कितने रंग-बिरंगे ख्याल आते हैं। दूर कहीं दो पहाड़ियों के बीच इतराता, धुंए जैसा बादल अतीत के पन्ने पलट देता है। सपने, दोस्ती, कोशिश, उलझन, और न जाने क्या-क्या मन में रील की मानिन्द सर्र से चक्कर काट जाता है। बीच में चाय की चुस्की, और फिर विविध भारती पर अचानक ही बज उठता एक गीत मन को रॉकेट पर बिठाकर कहीं दूर ले जाता है- "दिल ढूंढता है... फिर वही, फुरसत के रात-दिन..."। Govt Intermediate College, Budaun, Uttar Pradesh: My playground till 1982 बदायूं में गर्मियों की छुट्टियां बड़ी सुस्त होती थीं। न टीवी, न इंटरनेट, न फोन , और मोबाइल तो तब कल्पना में भी नहीं होते थे। देश-दुनिया से जुड़े रहने का एक ही जरिया था, चिट्ठी। बड़े जतन से, बहुत खोजने के बाद कुछ रंग-बिरंगे लैटर पैड लाते थे। जाहिर है, ये रंगीन खूबसूरत पन्ने बहुत ही खास दोस्तों के लिए होते थे। पत्र लिखने के लिए हरी, नीली, लाल और काली स्याही वाले फाउंटेन पेन। पोस्ट करने के लिए खास रंग के लिफाफे और अलग-अलग आकार-प्रकार के डाक टिकट