सरकारें क्यों छिपाती हैं मौसम की जानकारी?

उत्तराखंड में बादल फटा। तबाही जारी है। तीन साल पहले लद्दाख में बादल फटा। भयानक तबाही हुई। इससे पहले उत्तरकाशी में भूकम्प और बारिश से बर्बादी हो चुकी है। सवाल उठता है कि मौसम विभाग को अंदाजा नहीं था कि भारी बरसात सिर पर है? प्रदेश और जिला प्रशासन को भी भनक नहीं थी? उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग सो रहा था? या फिर वो आपदा आने के बाद ही काम शुरू करने के लिए बना है? भारत का आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्रीय जल आयोग, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय - ये सब एजेंसियां क्या कर रही थीं? 


वन विभाग की मंजूरी के बिना नदी किनारे निर्माण मना है। फिर कैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अनाधिकारिक निर्माण होते रहते हैं? वो भी नदियों के तट पर। खुद प्रदेश सरकार कह रही है कि बाढ़ से गिरे ज्यादातर मकान गैरकानूनी थे, इसलिए वे  मुआवजे के हकदार नहीं हैं। भई वाह। मकान गिरते ही पता चल गया कि गैरकानूनी है। ठीक-ठाक खड़ा था तब किसी को भनक नहीं थी। जाहिर है सबकी मिली भगत है। भ्रष्टाचार के चलते ही ये गड़बडिय़ां हैं।

मेरे एक पत्रकार मित्र ने हाल ही में फेसबुक पर राज जाहिर किया कि सरकारें मौसम की सूचनाएं छिपाती हैं। खराब मौसम की भविष्यवाणी से देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ सकता है। निवेश प्रभावित हो सकता है। कीमतों और बाजार पर असर पड़ सकता है। सरकारों की सेहत पर फर्क पड़ता है। इसी नाते मौसम विभाग को सही सूचनाएं जग-जाहिर न करने के आदेश दिये जाते हैं। क्या उत्तराखंड के मामले में भी यही सच है? यदि ऐसा है तो यह भयानक संकेत है। मौसम अच्छा होने की भविष्यवाणी इस वर्ष बार-बार सच हुई तो हम खुश हो रहे थे कि पहली बार मौसम विभाग सही तरीके से काम कर रहा है। परंतु इसके  एंटीना में कुछ काला है, यह पोल तो अब खुली है। 


क्या मौसम की सही जानकारी जाहिर न करने के इस जघन्य अपराध के लिए मौसम विभाग के आला अधिकारी सजा के हकदार नहीं हैं? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वयं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुखिया हैं। क्या उन्हें भी जानमाल के भारी नुकसान के अपराध की सजा नहीं मिलनी चाहिए?

उत्तराखंड में 135 किलोमीटर एरिया को भागीरथी पर्यावरण संवेदी क्षेत्र घोषित करने की बात चली तो प्रदेश सरकार इसके खिलाफ हो गयी। जबकि ऐसा करना पर्यावरण, प्रकृति और उत्तराखंड की जनता के हित में होगा। जाहिर है प्रदेश सरकार जलविद्युत लॉबी के विरोध के आगे झुक रही है। अंदर मिली-भगत जो होगी। यह गलत है।

अब यह बहुत जरूरी है कि प्रदेश और देश के बाकी ऐसे ही हिस्सों में आपदा प्रबंधन को चुस्त-दुरुस्त किया जाये। अगले मानसून से पहले ही मौसम की सही जानकारी देने की व्यवस्था की जाये। सरकारें आपदाओं की पूर्व जानकारियों को जनता से न छिपाएं। गंगा एवं इसकी सहायक नदियों- अलकनंदा, भागीरथी, धौलीगंगा, मंदाकिनी, रामगंगा, यमुना आदि के किनारे से गैर-कानूनी मकानों व होटलों को हटाया जाये। भागीरथी इको सेंसिटिव जोन को लागू किया जाये।


दूसरी बात, देवी-देवता पहाड़ों की चोटी पर विराजमान जरूर हैं। परंतु उन तक पहुंचने के रास्ते और अन्य साधन बहुत कम और खराब हाल में हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में जाने वाले यात्रियों की संख्या को भी नियंत्रित किया जाना जरूरी है। पैसे के लालच में लोग तो एवरेस्ट को भी पिकनिक स्थल बना चुके हैं। अब यह अति रुकनी चाहिए।



Contact: Narvijay Yadav, E: narvijayindia@gmail.com

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