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लद्दाख में पहली बार

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मैंने कभी सपने में भी न सोचा था कि लद्दाख से मेरा इतना पुख्ता नाता जुड़ जायेगा. पर ऐसा हुआ और अपने आप ही. लेह स्थित महाबोधि इंटर्नेशनल मेडिटेशन सेंटर के प्रचार प्रसार का जिम्मा क्या संभाला कि सब कुछ खुद व खुद होता चला गया. महाबोधि की सेवा मैंने सदैव ही निशुल्क की और नतीजा सामने है. अप्रैल में मेरी मुंहबोली बहन मिली मूनस्टोन केरल जाना चाहती थीं. मेरी सलाह पर वो लेह जाने को राजी हो गईं. मिली  ब्रिटिश सिंगर हैं. उनके मित्र अर्जेंटीना के अलेजांद्रो ग्रिसोसकी भी हमारे साथ लेह गए. महाबोधि लेह-लद्दाख में नरविजय यादव, नागासेना, मिली मूनस्टोन एवं अलेजांद्रो ग्रिसोसकी  दिल्ली एअरपोर्ट पर ही हमें महाबोधि लेह के वरिष्ठ सहयोगी नागासेना जी मिल गए. फिर एक सप्ताह तक उन्होंने ही हमारी देखरेख की. अप्रेल में गेस्ट हाउस की कैंटीन बंद थी. सो हम नागासेना जी के साथ मोनेस्ट्री में ही भोजन करते थे. यह चित्र तभी का है. उस वक़्त लद्दाख के पहाड़ों पर बर्फ की सफ़ेद चादर बिछी हुई थी, जो मेरे लिए एक नया अनुभव था. मै बच्चे की तरह बर्फ से ढकीं चोटियाँ देखता रहता था. यह सब अदभुत था. 

पलई मेले में प्रकाश फाउंडेशन का मेडिकल कैम्प

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गांंव से राजू ने जैसे ही फोन पर बताया कि नवरात्र का मेला लगने वाला है, तत्काल मैंने पलई जाने का मन बना लिया। मेरे पूर्व सहपाठी, पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ डॉक्टर विरिन्दर सिंह गोगिया की पत्नी श्रीमती कैनी गोगिया हमारे घर पर ही थीं। वे भी तुरंत चलने के लिए तैयार हो गयीं। मेरी बेटी खुशबू और उनकी बेटी गुनीत भी साथ हो लीं। 30 सितम्बर, 2011 को हम कार से बदायूं पहुंचे। अगली सुबह हम पलई में थे। मेले में आसपास के गांवों के लोग भी थे। हमारी गाड़ियां जैसे ही मेला स्थल पहुचीं, उत्साह भरे नारे सुनाई देने लगे। वहां मौजूद लोगों में बहुत उत्सुकता और कौतूहल था। पूरा वातावरण मानो पूरी तरह से चार्ज्ड था।   मेरे मित्र, बदायूं के डॉ. रमिंदर सिंह भी सपिरवार साथ में थे। उन्होंने वहां एक नि:शुल्क मेडिकल कैम्प लगाया और सौ से ज्यादा लोगों के स्वास्थ्य का  परीक्षण किया। मैंने प्रकाश फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट के उद्देश्यों और कामों के बारे में वहां मौजूद लोगों को बताया। सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। कैनी जी ने बच्चों को गेम खिलवाये। हमने विजेताओं को पुरुस्कृत किया। कुल मिलाकर सब कुछ बहुत ही खुशनुमा और