दंत भला तो सब भला

दांत में दर्द हुआ तो समय निकालना ही पड़ा। सुबह चाय पीने के बाद सीधे जा पहुंचा डेंटल क्लीनिक। भारत विकास परिषद ने एक काम अच्छा किया है। इनके मेडिकल सेंटर में चिकित्सक बड़ी लगन और सेवा भाव से काम करते हैं। दांतों के क्लीनिक की तो जितनी तारीफ की जाये कम है। बस भीड़ अधिक रहने की वजह से वहां बार-बार जाना पड़ता है। पर अब मैं उसकी परवाह नहीं करता। दांत ठीक रखना अब मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

डेंटिस्ट ने दांतों पर एक सरसरी निगाह डाली और फरमान सुना दिया कि अधिकांश दांतों में फिलिंग होनी है। ब्रश तेजी से करने के कारण सभी दांत काफी हद तक कट चुके हैं। यदि देखभाल न की तो इनमें अधिक समस्याएं हो सकती हैं। समय बचाने के लिए मैं क्या, ज्यादातर लोग तूफानी गति से ब्रश करते हैं, वो भी सख्त रेशों वाला। किसे परवाह है ब्रश की बनावट की। लोग तो बस टूथपेस्ट के रंग और उसके  स्वाद पर ही ध्यान लगाते हैं। या फिर खरीद लाते हैं वो वाला टूथपेस्ट जिसका विज्ञापन अधिक आता है। स्कूल या घर पर भी इस बारे में खास नहीं बताया जाता।


क्लीनिक में चार-पांच डेंटिस्ट हैं। सभी फीमेल और बेहद लगनशील और काबिल। वे न सिर्फ दांतों का इलाज तल्लीनता से करती हैं, मरीजों को दांतों के बारे में कई जरूरी हिदायतें भी देती रहती हैं। जैसे कि ब्रश सॉफ्ट वाला होना चाहिए। टूथपेस्ट कोई सा भी हो, उससे फर्क नहीं पड़ता। पेस्ट ब्रश की रगड़ को कम करता है और थोड़ा स्वाद बढ़ा देता है, जिससे दांत साफ करने में रुचि बनी रहती है। दांतों की सफाई में अहम बात है ब्रश करने का सही तरीका। 

हमें बताया गया कि ब्रश को आरी की तरह नहीं चलाना चाहिए। उसे हल्के हाथ से गोल-गोल घुमाते हुए दांतों पर रखना चाहिए। ब्रश का मुख्य मकसद तो यह है कि दांतों में फंसे रेशे या अन्य किसी खाद्य पदार्थ को बाहर करना। दांतों को चमकाने के लिए ब्रश को रगडऩा एक खराब आदत है। सुबह के ब्रश से भी ज्यादा जरूरी होता है रात के भोजन के बाद ब्रश करना। वरना दांतों में फंसे भोजन कण रात भर सड़ते रहेंगे और बैक्टीरिया की दावत बनेंगे। हालांकि, दिन में दो बार ब्रश करना एक स्वस्थ आदत है। 

मुंह के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है व्यक्ति का संपूर्ण स्वास्थ्य। चूंकि भोजन मुंह से ही करना होता है, इसलिए दांत और मुंह का एकदम फिट और साफ रहना जरूरी है। दांतों की देखभाल यदि ठीक से न की जाये तो दिल की बीमारियां और पेट के रोग होने का खतरा पैदा हो सकता है। कुल मिलाकर यदि हाथ और दांत साफ रहें तो आंत सहित बाकी अंग भी स्वस्थ बने रहते हैं। यानी, दंत भला तो सब भला।

चिकित्सा प्रौद्योगिकी के विकास का नतीजा है कि अब दांतों के इलाज में बड़ी सहूलियत हो गयी है। दर्द तो दूर की बात है, पता भी नहीं चलता कि कब डॉक्टर ने खराब दांत निकालकर नया दांत लगा दिया। या कि टूटे दांत की मरम्मत कर दी। या फिर दांतों पर चढ़ी सख्त परत को स्केलिंग करके हटा दिया। खाने-पीने की चीजों से दांतों पर टारटर नामक सख्त परत चढ़ जाती है। सभी के दांतों पर। इससे सांस में बदबू पैदा हो सकती है। दांत कमजोर हो सकते हैं। इसीलिए डेंटिस्ट हर किसी को हर छह-छह महीने बाद नियमित तौर पर स्केलिंग कराने की सलाह देते हैं। 

क्लीनिक में अपनी बारी का इंतजार करते वक्त मेरी निगाह दीवार पर लगे पोस्टर पर गयी। लिखा था मसूढ़ों से खून आने लगे तो समझो परेशानी बढ़ रही है। ऐसे में दंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। मसूढ़े स्वस्थ रखने के लिए सभी को नमकीन गुनगुने पानी से दिन में दो बार कुल्ला करना चाहिए।  




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