संदेश

2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लद्दाख में पहली बार

चित्र
मैंने कभी सपने में भी न सोचा था कि लद्दाख से मेरा इतना पुख्ता नाता जुड़ जायेगा. पर ऐसा हुआ और अपने आप ही. लेह स्थित महाबोधि इंटर्नेशनल मेडिटेशन सेंटर के प्रचार प्रसार का जिम्मा क्या संभाला कि सब कुछ खुद व खुद होता चला गया. महाबोधि की सेवा मैंने सदैव ही निशुल्क की और नतीजा सामने है. अप्रैल में मेरी मुंहबोली बहन मिली मूनस्टोन केरल जाना चाहती थीं. मेरी सलाह पर वो लेह जाने को राजी हो गईं. मिली  ब्रिटिश सिंगर हैं. उनके मित्र अर्जेंटीना के अलेजांद्रो ग्रिसोसकी भी हमारे साथ लेह गए. महाबोधि लेह-लद्दाख में नरविजय यादव, नागासेना, मिली मूनस्टोन एवं अलेजांद्रो ग्रिसोसकी  दिल्ली एअरपोर्ट पर ही हमें महाबोधि लेह के वरिष्ठ सहयोगी नागासेना जी मिल गए. फिर एक सप्ताह तक उन्होंने ही हमारी देखरेख की. अप्रेल में गेस्ट हाउस की कैंटीन बंद थी. सो हम नागासेना जी के साथ मोनेस्ट्री में ही भोजन करते थे. यह चित्र तभी का है. उस वक़्त लद्दाख के पहाड़ों पर बर्फ की सफ़ेद चादर बिछी हुई थी, जो मेरे लिए एक नया अनुभव था. मै बच्चे की तरह बर्फ से ढकीं चोटियाँ देखता रहता था. यह सब अदभुत था. 

पलई मेले में प्रकाश फाउंडेशन का मेडिकल कैम्प

चित्र
गांंव से राजू ने जैसे ही फोन पर बताया कि नवरात्र का मेला लगने वाला है, तत्काल मैंने पलई जाने का मन बना लिया। मेरे पूर्व सहपाठी, पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ डॉक्टर विरिन्दर सिंह गोगिया की पत्नी श्रीमती कैनी गोगिया हमारे घर पर ही थीं। वे भी तुरंत चलने के लिए तैयार हो गयीं। मेरी बेटी खुशबू और उनकी बेटी गुनीत भी साथ हो लीं। 30 सितम्बर, 2011 को हम कार से बदायूं पहुंचे। अगली सुबह हम पलई में थे। मेले में आसपास के गांवों के लोग भी थे। हमारी गाड़ियां जैसे ही मेला स्थल पहुचीं, उत्साह भरे नारे सुनाई देने लगे। वहां मौजूद लोगों में बहुत उत्सुकता और कौतूहल था। पूरा वातावरण मानो पूरी तरह से चार्ज्ड था।   मेरे मित्र, बदायूं के डॉ. रमिंदर सिंह भी सपिरवार साथ में थे। उन्होंने वहां एक नि:शुल्क मेडिकल कैम्प लगाया और सौ से ज्यादा लोगों के स्वास्थ्य का  परीक्षण किया। मैंने प्रकाश फाउंडेशन चैरिटेबल ट्रस्ट के उद्देश्यों और कामों के बारे में वहां मौजूद लोगों को बताया। सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। कैनी जी ने बच्चों को गेम खिलवाये। हमने विजेताओं को पुरुस्कृत किया। कुल मिलाकर सब कुछ बहुत ही खुशनुमा और

लेह की बात ही कुछ और है

चित्र
लेह लदाख के बारे में पहले मैं अधिक नहीं जानता था. गत वर्ष नवम्बर में एक पत्रकार मित्र, वंदना शुक्ला, के आग्रह पर मैं एक बौद्ध भिक्षुक भिक्षु संघसेना से चंडीगढ़ के होटल पिकाडिली में मिला. वे महाबोधि इंटर्नेशनल मेडिटेशन सेंटर, लेह-लदाख के संस्थापक निदेशक हैं.  यह संस्थान लदाख क़ी गरीब व अनाथ लड़कियों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. लेह स्थित महाबोधि स्कूल से दसवीं करने के बाद इन बच्चों को आगे पढने में प्रोब्लम थी. सो गुरूजी ने चंडीगढ़ में एक गर्ल्स होस्टल खोल दिया. तीस से अधिक लड़कियां रामगढ़ स्थित इस हॉस्टल में रह कर चंडीगढ़ पंचकुला के कॉलेजों में स्टडी कर रही हैं. इस वर्ष इनकी संख्या पचास से अधिक हो जाएगी. गत अप्रेल में मुझे लेह जाने का अवसर मिला. ब्रिटिश सिंगर मिली मूनस्टोन एवं उनके वकील दोस्त अर्जेंटीना निवासी अलेजांद्रो ग्रिसोसकी भी साथ थे. सड़क मार्ग पर बर्फ जमा थी, इसलिए हम दिल्ली से गोएयर क़ी फ्लाईट से लेह पहुंचे. वहां बर्फ से लदे ऊँचे पहाड़ देखकर मजा आ गया. अदभुत नज़ारा था. ऊँचे पहाड़ पर चढ़ कर हमने फोटोग्राफी क़ी और खूब मज़े किये. जल्द ही फ

इतना आसान नहीं है पेड़ पर चढ़ना

चित्र
पेड़ पर चढ़ना आसान है लेकिन उतरना मुश्किल. विश्वाश न हो तो आजमा कर देख लीजिये. बचपन में मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ गाँव में बीतती थीं. डेढ़ महीना गाँव में गुजारना आसान न होता था. ग्रामीण  बच्चों के साथ मैं बाग़ की ओर निकल जाता था. दोपहरी भर हम पेड़ों पर चढ़ते उतारते रहते और मस्ती करते.  घर में ही गूलर का एक पेड़ था. गूलर के बारे में कहा जाता है की इसकी लकड़ी बेहद कमज़ोर होती है. ज़रा सा दबाव पड़ते ही टूट जाती है. इसके फल लाल रंग के होने पर बड़े मीठे हो जाते हैं. हम बच्चे इसे चाव से खाते थे. पकी गूलर तोड़ने के लिए मई ऊपर चढ़ता गया. गुच्छे की ओर हाथ बढाया ही था कि न जाने कहाँ से चीतों की फौज ने हमला बोल दिया. मैं संभल पाता कि  चीतों ने काटना शुरू कर दिया. हवा तेज थी और चिकनी गूलर से नीचे उतरना इतना आसान न था. यह चित्र सुखना वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी का है. अब तो पेड़ पर चढ़ना बेहद रिस्की लगता है. 

रचनात्मकता का अपना ही आनंद है

चित्र
रचनात्मक होना अपने आप में एक बेहतरीन अनुभव है. कहते हैं कि रचनात्मक होना कुछ हद तक ईश्वर होने जैसा है. इनोवेटिव होना एक बड़ी ताकत है. मैं तो इसे अपनी एक बड़ी शक्ति मानता हूँ. इस तरह आप कुछ नया कर पाते हैं और प्रतियोगिता से भी चार कदम आगे रहते हैं.   कुछ नया रचना या बनाना एक अच्छा शौक भी हो सकता है. बिजनेस में यह गुण एक अतिरिक्त योग्यता जैसा है. एक छात्र इस शौक से अपनी कक्षा में बाकी स्टुडेंट्स  से आगे रह सकता है. एक स्त्री इस गुण को अपने व्यवसाय में तब्दील कर सकती है. यह चित्र एक एनीमेशन स्कूल का है.

समंदर की लहरों पे ज़िन्दगी

चित्र
मैदान के लोग रोजमर्रा की ज़िन्दगी में समंदर की विशालता और उसकी मस्ती के बारे में उतना नहीं जानते जितना की बोम्बे के लोग समझ पाते हैं. मैं जब भी मुंबई जाता हूँ तो समंदर में कुछ वक़्त बिताने का कोई मौका नहीं छोड़ता. पिछली बार मैं अपने कुछ बिसनेस फ्रेंड्स के साभ जुहू के एक शानदार होटल में रुका था. कामकाज से फुर्सत मिलने पर मैंने एलिफेंटा केव्स चलने का प्रस्ताव रखा तो सब ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए.  गेटवे ऑफ इंडिया से हमने मोटरबोट ली और हो लिए सवार समंदर की लहरों पे. एलिफेंटा केव्स मुंबई से कुछ किलोमीटर की दूरी पर हैं. यह एक पर्यटन स्थल है जहां प्रतिदिन भारी संख्या में सैलानी पहुँचते हैं. हमारे पास समय कम था इसलिए वहाँ घूमने की बजाय हम तत्काल ही वापस लौट पड़े. वापसी में हवा का रुख हमारी तरफ था, इसलिए बोट हिचकोले लेने लगी. मैं एकदम आगे जाकर लहरों की उछलकूद का आनंद लेता रहा.