मानसून में ऋषिकेश
मानसून के दौरान इस साल भी उत्तराखंड जाने का मन किया। बैग पैक किया और पहुंच गया मैं ऋषिकेश। गंगा का आकर्षण ही प्रमुख है, सो फिर से संत सेवा आश्रम को चुना। रूम भी वही पसंद किया, जिसमें पिछले दो वर्षों से निरंतर रुकता आया हूं। सेकेंड फ्लोर के कोने वाले कमरे से गंगा का विहंगम दृश्य दिखता है। लक्ष्मण झूला की आवाजाही भी साफ नजर आती है। फर्क सिर्फ यह रहा कि इस बार मेरे रूम के बाहर बंदरों की जगह लंगूर आते रहते थे। सुना है लंगूर ज्यादा खतरनाक होते हैं और अपनी पूंछ व दांतों से वार करते हैं। इस नाते दरवाजा दोनों तरफ से लॉक रखना पड़ा। हां, खिडक़ी में जाली लगी होने के कारण बाहर का नजारा और हवा में कोई रुकावट नहीं थी। पहला दिन तो लैपटॉप पर हिंदी अनुवाद करते बीता। शाम होते ही बादल घिरने लगे थे। सुना था ऋषिकेश में रोज बारिश होती है। अनुभव भी किया। सूर्य ऊपर होने के बावजूद अंधेरा सा छाने लगा। सामने तपोवन के ऊपर पहाडिय़ों पर काले सफेद बादलों ने दिलकश मंजर पेश किया। ऐसे बादल चंडीगढ़ या दिल्ली जैसे शहरों में हमें दिखाई नहीं देते। बचपन में गांवों के खुले आकाश में प्रकृति के जो नजारे दिखते थे, वे शहर