चार महीने हो गये। बाहर की दुनिया से कटे हुए। आज तो शहर में गेड़ी ही लगा डाली।


चार महीने हो गये। बाहर की दुनिया से कटे हुए। शुरू का एक माह तो ऐसा रहा कि दिन और रात का ही पता नहीं चलता था। दूसरे महीने खिड़की से तनिक धूप दिखी और बिल्डिंग का एक रूखा सा हिस्सा। उसे ही देर तक निहारता रहा था। चलना तो छोड़िए, बैठना ही एक सपना था। ग्यारह बार मूवमेंट हुआ, लेकिन स्ट्रेचर पर लेटे-लेटे।

घर आने के बाद भी बैड से हिलना मुश्किल था। पिछले कुछ हफ्तों में हालात सुधरे। आज तो शहर में गेड़ी ही लगा डाली। माउंट व्यू के सामने काॅफी पी। लेक देखी। सड़कों से गुजरते हुए ऐसा लगा मानो वृक्षों और हरियाली के बीच तैरते हुए जा रहे हों। यही तो विशेषता है चंडीगढ़ की।


वैक्सीन लगवाने के बाद खुशबू ने कहा, "डैडी मौसम तो गेड़ी का हो रहा है, चलें?" मेरे मौन को ही मेरी स्वीकृति मान बेटी ने कार सुखना की ओर घुमा दी। लगा ही नहीं कि कई माह के बाद घूम रहा हूं। शरीर स्वस्थ हो रहा है। मन तो वैसे भी हमेशा उल्लास से भरा रहता है। ईश्वर से प्रार्थना है कि सबका जीवन हंसी-खुशी से भरा रहे! भारत खुशहाल रहे! जीव-जंतु स्वच्छंद घूमें, जिएं! अफगानिस्तान में हालात सुधरें, अमन कायम हो!

- नरविजय यादव

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