दही-जलेबी की तरह गायब है भाई-बहन का रिश्ता !


 
इंदौर जाऊं और दही-जलेबी-पोहा न खाऊं, ऐसा कैसे हो सकता है?
रक्षाबंधन आ गया। सगे भाइयों के राखियां बंधेंगी। मुंहबोले भाइयों का जमाना तो गया। अब न कोई बनना चाहता है, न बनाना। कम से कम टीवी देख कर तो यही लगता है। रियेलिटी प्रोग्राम हों या कपिल शर्मा जैसे शो, सब यही दिखाते हैं कि किसी लड़की को बहन कहना बेकार बात होती है। यहां तक कि, लड़िकयां भी नहीं चाहतीं किसी को भाई बनाना। यह नये जमाने का शगल है कि भाई-बहन का मुंहबोला रिश्ता दही-जलेबी के नाश्ते की तरह दुर्लभ हो गया है।

एक वजह यह भी है कि आज के लड़कों में दम नहीं होता है भाई बनने का। फुस्स टाइप के पटाखे क्या खाके बनेंगे किसी लड़की के भाई? उसके लिए दमखम चाहिए होता है। बहन मुश्किल में हो तो रक्षा करने के लिए। करेक्टर चाहिए होता है। संस्कार चाहिए होते हैं। आत्म-अनुशासन चाहिए होता है। मर्दानगी चाहिए होती है महिलाओं का सम्मान करने के लिए। यह सब होता नहीं, तो पिचकू लड़के ब्वॉय फ्रेंड बनके ही खुश हो लेते हैं। लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार घटिया और ओछे किस्म के लोग करते हैं। यह चरित्रहीनता की पराकाष्ठा है।

चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित चित्रकार हेमंत मल्होत्रा की बनायी एक अमूर्त पेंटिंग
वैसे रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के बीच का ही रिश्ता नहीं होता। यह किसी जरूरतमंद को मदद पहुंचाने और उसकी रक्षा करने का संकल्प भी होता है। पहले ब्राह्मणों के भी राखी बांधी जाती थी। पंडित जी घर-घर जाते और राखियों से हाथ भरा लेते थे। दक्षिणा का झोला भर जाता, सो अलग। बचपन में मेरा हाथ भी राखियों से कोहनी तक भर जाता था। फिर रंगबिरंगी राखियों का अंजर-पंजर अलग करके श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की झांकियां तैयार की जाती थीं। मजा आता था झिलमिलाती झांकी बनाने में।

बेरोजगारी, महंगाई, तनाव, इंटरनेट, घटिया फिल्में और योयो टाइप के भद्दे गाने भी बड़ी वजह हैं समाज में नैतिकता घटने के पीछे। सोसाइटी को सही लाइन पर लाने के लिए माताओं को चाहिए कि वे अपने पुत्रों को लड़कियों व महिलाओं की इज्जत करना सिखाएं। सिर्फ लड़कियों को नसीहत देना ठीक नहीं। लड़कों की क्या जिम्मेदारी है, यह सबसे पहले तो उनके माता-पिता ही बता सकते हैं।


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