खुश रहने के कितने पैसे लगते हैं?
वर्तमान में जिएं और प्रसन्न रहें : भिक्खू संघसेना
एक पत्रकार मित्र की फेसबुक पोस्ट देखी तो मैं सोच में पड़ गया। उनकी पत्नी ने लिखा था- 'एक अच्छी फैमिली फोटो, क्योंकि हम अक्सर एक साथ समय नहीं बिता पाते हैं और एक शादी के मौके पर हम आज इतने खुश हैं, जितना पहले कभी नहीं थे… बंगाली शादियां होती ही ऐसी हैं, वे आपको बेहद खुश कर देती हैं।'
मित्र पत्रकार हैं, तो जाहिर है कि परिवार को कम ही समय दे पाते होंगे। पत्रकारों का जीवन होता ही ऐसा है। दुनिया भर की खुशियों और गम में शरीक होते हैं, पार्टियों में जाते हैं, देश-विदेश भी घूम आते हैं, लेकिन अकेले ही। न तो इतनी छुट्टी मिल पाती है, न इतने पैसे होते हैं कि मनचाहे ढंग से परिवार के साथ घूम-फिर सकें। कहीं दूर चले भी गये तो वापस लौटने पर कुर्सी मिलेगी या छिन जायेगी, इसकी धुकधुकी अलग से लगी रहती है। शाम दफ्तर में बीतती है और पूरा शहर जब सो जाता है, तब घर वापसी होती है देर रात में। ढंग के पत्रकारों की दिनचर्या ऐसी ही होती है।
मुझे सोच में जिस बात ने डाला वो यह थी कि - 'हम आज तक इतने खुश कभी नहीं हुए'। यह तो सचमुच ही चिंताजनक है कि खुश होने के लिए कोई फैमिली किसी शादी में शामिल होने का इंतजार करे। मुझे तो शादी-ब्याह में जाना बहुत भारी सिरदर्दी लगता है। मैं अकेला भी बड़ा खुश रहता हूं। बल्कि हर समय खुश रहता हूं। खुश रहने के पैसे थोड़े ही लगते हैं, न इसके लिए किसी की परमीशन चाहिए होती है। यह तो एक निर्णय है, जो स्वयं आपको लेना होता है, कि आप खुश रहना चाहते हैं या नहीं? जिन्होंने तय कर लिया है कि मुंह लटकाये रहना है, वे तो महल में, पांच सितारा होटल में, या बीएमडब्ल्यू कार में बैठकर भी मुंह लटकाये ही मिलेंगे।
दुनिया में एक देश ऐसा है जहां के नागरिक सबसे अधिक खुश रहते हैं। मैं भूटान की बात कर रहा हूं। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा तो हमेशा से कहते आये हैं कि मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य प्रसन्न रहना है। महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर के संस्थापक अध्यक्ष भिक्खू संघसेना का भी ऐसा ही मत है कि वर्तमान में जिएं और खुश रहें।
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