दिया कब बुझा, पता नहीं

सूचनाओं का सागर है। दुनिया भर की खबर है। बस अपनी सुध नहीं। न करीबियों की। सोशल मीडिया है। टीवी है। इंटरनेट है। व्हाट्सएप है। चुटकुले हैं। भीड़ है। बाजार है। मोदी हैं। केजरीवाल हैं। पप्पू है। लालू हैं। महंगाई है। अखबारों में खबरों की जगह विज्ञापन हैं। बेमतलब की चीजें बहुत हैं। काम का कम ही है। जो है वो महंगा है।

पतंजलि के विज्ञापन फ्री हैं। प्रोडक्ट महंगे हैं। पर उनके यहां थैली खरीदनी पड़ती है। नहीं तो सौदा हाथ में ले जाओ। खबरों का कोई चैनल ऐसा नहीं, जिसका चूल्हा पतंजलि न चला रहा हो। एमडीएच के बब्बा भी हार गये रामदेव से। पहले परेशान किया चौबीस घंटे की टीवी न्यूज ने। अब डिजिटल पोर्टल और सोशल मीडिया ने तो कबाड़ा ही कर दिया। जानकारी कम, विज्ञापनी कचरा ज्यादा। इस जंजाल में पता ही नहीं चलता आप खोजने क्या निकले थे, और उलझ किस चीज में गये। सच ही है, अति सर्वत्र वर्जयेत।

आज नेट पर खोज रहा था आज की खबर। सामने आ गयी ढाई साल पहले की एक खबर। अजय एन झा के गुजर जाने की। टीवी और अखबारी दुनिया के बड़े पत्रकार थे। अच्छे मित्र थे। बंगलौर में मिले थे सहारा के ऑफिस में। बात 1993 की है। मुझे कवर करना था एविया इंडिया। 

भारत का पहला इंटरनेशनल एविएशन शो। अजय जी वहां विमानों की फोटोग्राफी कर रहे थे। नेचर फोटोग्राफी का शौक था उन्हें। बड़े स्नेह से चार दिन और रोक लिया था उन्होंने कि बंगलौर से ही खबरें फैक्स करते रहो। दिल्ली में हमारे घर भी आये थे। अफसोस कि अब वे नहीं हैं। कौन दिया कब बुझ जाये, पता नहीं। बेमतलब की बातों से मीडिया पटा रहता है। इस बीच अपने खो जाते हैं।
 : http://www.bhadas4media.com/article-comment/2365-ajay-n-jha-death


Late Shri Ajay N Jha, Senior Journalist (File Photo)



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