इतना आसान नहीं है पेड़ पर चढ़ना

पेड़ पर चढ़ना आसान है लेकिन उतरना मुश्किल. विश्वाश न हो तो आजमा कर देख लीजिये. बचपन में मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ गाँव में बीतती थीं. डेढ़ महीना गाँव में गुजारना आसान न होता था. ग्रामीण  बच्चों के साथ मैं बाग़ की ओर निकल जाता था. दोपहरी भर हम पेड़ों पर चढ़ते उतारते रहते और मस्ती करते. 

घर में ही गूलर का एक पेड़ था. गूलर के बारे में कहा जाता है की इसकी लकड़ी बेहद कमज़ोर होती है. ज़रा सा दबाव पड़ते ही टूट जाती है. इसके फल लाल रंग के होने पर बड़े मीठे हो जाते हैं. हम बच्चे इसे चाव से खाते थे. पकी गूलर तोड़ने के लिए मई ऊपर चढ़ता गया. गुच्छे की ओर हाथ बढाया ही था कि न जाने कहाँ से चीतों की फौज ने हमला बोल दिया. मैं संभल पाता कि  चीतों ने काटना शुरू कर दिया. हवा तेज थी और चिकनी गूलर से नीचे उतरना इतना आसान न था. यह चित्र सुखना वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी का है. अब तो पेड़ पर चढ़ना बेहद रिस्की लगता है. 



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