चंडीगढ़ के नजदीक कभी समंदर लहरें मारता था !

कल मुझे प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. रितेश आर्या के साथ कुछ समय बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। लद्दाख में, दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर बोरिंग करने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। उन्हें वाटरमैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। जमीन के नीचे पानी कहां पर मिलेगा, यह पता लगाने में डॉॅ. रितेश का मुकाबला कोई नहीं कर सकता। लेह स्थित महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर के परिसर में उन्हीं के लगाये बोरिंग से पानी आता है। लेह और कारगिल में सैन्य छावनी क्षेत्र में भी डॉ. रितेश के ही लगाये बोरिंग आज भी पानी दे रहे हैं। लद्दाख में तो उन्होंने कई वर्षों तक बहुत अधिक कार्य किया है। सुबाथू-धरमपुर मार्ग पर उनके लगाये अनेक बोरिंग निरंतर पानी दे रहे हैं, जबकि सरकारी बोरिंग कबके फेल हो गये।
पिछले कुछ समय से डॉ. रितेश कसौली व धरमपुर क्षेत्र के जीवाश्मों का विस्तार से अध्ययन कर रहे हैं। शिमला हाईवे पर यह स्थान चंडीगढ़ से महज घंटे भर की दूरी पर है। कसौली हिल स्टेशन क्षेत्र में उन्हें वृक्षों के और धरमपुर-सुबाथू रीजन में समुद्री सीपियों के अनगिनत जीवाश्म (फॉसिल) मिले हैं। सीपियां समुद्र में ही होती हैं, पहाड़ पर कैसे पहुंच गयीं। इसके बारे में डॉ. रितेश का दावा है कि 50 मिलियन यानी करीब पांच करोड़ साल पहले इस इलाके में समुद्र अठखेलियां किया करता था। जमीनी उथल-पुथल के चलते यहां पहाड़ बनते चले गये।
हिमालय के निर्माण और समुद्रों के रहस्यों को आम जन तक पहुंचाने के लिए डॉ. रितेश धरमपुर-सुबाथू रोड पर एक अनूठा फॉसिल म्यूजियम बनाने में जुटे हैं। यह उनके नव-गठित गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन, पृथ्वी विज्ञान केंद्र (अर्थ साइंस सेंटर) का एक महत्वपूर्ण भाग होगा। फॉसिल म्यूजिमयम चंडीगढ़, कसौली व शिमला आने वाले पर्यटकों और जिज्ञासु व्यक्तियों, खासकर स्कूली विद्यार्थियों के लिए एक बहुत ही दिलचस्प सेंटर होगा, जहां लोग अच्छे से जान पायेंगे कि कैसे समुद्र से हिमालय बना और पहले इस रीजन का भू-इतिहास क्या रहा होगा। विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए यह एक महत्वपूर्ण टूरिस्ट डेस्टिनेशन साबित होगा।
चंडीगढ़-शिमला राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए पहाड़ों को बड़े पैमाने पर काटा जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र की भूसंरचना के अनेकानेक रहस्य उजागर होते जा रहे हैं। विशाल चट्‌टानों को तोड़ना किसी एक व्यक्ति के लिए कदापि संभव नहीं है, लेकिन राजमार्ग के निर्माण के लिए शक्तिशाली मशीनों से पहाड़ों को धराशायी किया जा रहा है। एक भूवैज्ञानिक के लिए तो मानो यह एक बेशकीमती खजाना है। डॉ. रितेश "हिमालय को पृथ्वी का कब्रिस्तान" और पहाड़ों को बेतरतीब ढंग से तोड़ने को "जीवाश्मों का कत्लेआम" कहते हैं।
हाईवे बनाने वालों के लिए यह एक मलबा है, लेकिन डॉ. रितेश आर्या की पारखी निगाहें पत्थर के टुकड़ों में पृथ्वी के विकास की कहानियां खोज लेती हैं। जैसे ही उन्हें कोई खास संरचना नज़र आती है, डॉ. रितेश तुरंत गाड़ी रोकते हैं और भूविज्ञान की दृष्टि से बेशकीमती टूकड़ों को संजो लेते हैं। मंगलवार को उन्होंने इस खोजबीन में काफी समय लगाया। मैं चुपचाप उनकी तस्वीरें लेता रहा और कुछ वीडियो भी बनाये। उन्हीं में से एक छोटा वीडियो यहां प्रस्तुत है। बाद में, हम पृथ्वी विज्ञान केंद्र भी गये, जहां अभी निर्माण कार्य जारी है।

- नरविजय यादव, प्रेसीडेंट - चंडीगढ़ चैप्टर, ब्लॉगर्स एलाएंस
Email: narvijayindia@gmail.com


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