साइकिल पर हिमालय

सैकड़ों किलोमीटर पैडल मारते हुए दुनिया की सबसे ऊंची सड़क पर पहुंचना किसी भी साइकिल सवार का सपना हो सकता है। इस सपने को हकीकत में बदला मनाली-खारदूंगला साइकिलिंग चैम्पियनशिप 2015 में भाग ले रहे 63 साइकिल सवारों ने। इनकी यात्रा शुरू हुई जुलाई के अंतिम सप्ताह में मनाली के जवाहर चौक से, जिसका समापन हुआ खारदूंगला पर, जिसे दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल दर्रा होने का गौरव प्राप्त है।



चैम्पियनशिप के आयोजक नॉर्दर्न एस्केप्स के संस्थापक गौरव शिमर के लिए यह एक बेहद संतोषजनक क्षण था। छोटी-मोटी परेशानियों को छोड़कर अन्य कोई बड़ी दुर्घटना पेश नहीं आयी। हालांकि, रेस समाप्त होने के अगले ही दिन लेह में भारी बारिश के चलते मनाली और श्रीनगर राजमार्ग जरूर बंद हो गये। इस कारण से चंडीगढ़ और दिल्ली की ओर वापसी की यात्रा प्रभावित हुई। आर्मी ने तो तीन दिनों के लिए लद्दाख में बादल फटने जैसी घटनाओं की आशंका के चलते चेतावनी भी जारी कर दी थी। हालांकि, ऐसी कोई अनहोनी हुई नहीं। सिवाय इसके कि एक दिन के लिए लेह आने-जाने वाली सभी उड़ानें बंद रहीं।

पुरुष वर्ग में चैम्पियनशिप जीतने में कामयाब रहे पी. बी. प्रधान, जबकि महिलाओं में लक्ष्मी मगर विजेता घोषित की गयीं। पुरुषों में रनर-अप रहे रमेश आले व माखन सिंह और महिला वर्ग में एल्जेला एल्डरिच। नेपाल की साइकिलिंग विश्व चैम्यिपयन लक्ष्मी मगर ने चारों प्राइम अवार्ड जीत कर समां बांध दिया, जबकि पुरुष वर्ग में गाटा लूप्स, तांगलांगला व खारदुंगला के प्राइम अवार्ड रमेश आले ने जीते और मोरे मेटियोर का प्राइम अवार्ड सुरेंद्र सिंह को मिला। 

नॉर्दर्न एस्केप्स के संस्थापक गौरव शिमर 

प्रतिभागियों में आधे से अधिक तो भारतीय सेना, वायुसेना और जल सेना से थे। अन्य प्रतिभागी दिल्ली, मुंबई जैसे अनेक शहरों व अन्य देशों से थे। साइकिल की इस अनूठी और चुनौतीपूर्ण प्रतियोगिता में कुछ पारिवारिक किस्म के लोग, उम्रदराज लोग, तो कुछ भारी-भरकम स्त्रियां भी थीं, जिन्हें देखकर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे साइकिल भी चला सकती हैं। परंतु, इन सबने न सिर्फ साइकिल चलाई, बल्कि ऊंचे पहाड़, घाटियां, नाले, कीचड़ पार करते हुए ये सब विश्व की सबसे ऊंची सड़क तक पहुंचे। सलाम इनके जज्बे को।

नौ दिनों की इस हिमालयन साइकिल प्रतिस्पर्धा में मौसम ने बार-बार करवट बदला। कभी तेज धूप, तो कभी अप्रत्याशित रूप से बारिश की मार। सड़क की हालत भी रंग-बिरंगी रही। कहीं कोलतार की सपाट सड़क, तो कहीं धूल और पत्थरों से भरा कच्चा-पक्का रास्ता। केलांग के बाद अनेक स्थानों पर बर्फीले नाले भी पार करने पड़े। इनका पानी इतना ठंडा था कि पांव पड़ते ही लगता था मानो तेज चाकू से पांव को काट दिया गया हो। पर यह सब था बेहद रोमांचक।

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