सुबह की शांति और कैमरे की क्लिक

सवेरे जल्दी उठने की सलाह हर कहीं से मिलती रही है। बचपन से ही। ब्रह्मचर्य की एक पुस्तक पढ़कर तब कुछ दिन ब्रह्म-मुहूर्त में उठना शुरू भी किया था। पर वो सब अधिक दिन नहीं चल पाया। पत्रकारिता के दिनों में देर रात तक अखबार के दफ्तर में जागना और सुबह देर से उठना - एक नियम बन गया था यह। वह आदत मानो मेरे जीन्स में समा गयी। 

आज भी देर तक जागना और देर से उठना, यही चलता आ रहा है। वैसे आज की पूरी जैनरेशन में देर रात तक इंटरनेट, चैटिंग, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि में लगे रहना आम बात है। इसे ही कूल माना जाता है। इंटरनेट जैनरेशन के मित्रों का दायरा भी दुनिया भर में फैला होता है। भारत में जब रात होती है, यूरोप और अमेरिका में तब दिन होता है। जाहिर है, वहां बैठे दोस्तों से बतियाने के लिए तो रात में ही चैट करनी होगी। यह बात पुरानी जैनरेशन के लोग भला कैसे समझ पायेंगे। 


देर तक सोने के बहाने चाहे जो बनाये जायें, सच तो यह है कि सुबह-सुबह उठने में आनंद बहुत है। सूरज उगने से पूर्व वायुमंडल में जो शीतलता, शांति और सुकून होता है, वो पूरे दिन नहीं मिलता। चंडीगढ़ की तेज रफ्तार सड़कें भी सुबह को खाली-खाली और शांत होती हैं। पिछले माह आर्ट ऑफ लिविंग के हैप्पीनैस प्रोग्राम में प्रातःकाल 6 बजे वाली पाली में जाना हुआ। वाउ, कितना अच्छा लगा था। बेटी के लिए तो यह अनुभव किसी सपने जैसा रहा होगा। शीतल और दिल खुश कर देने वाली सुबह थी वो। 

कल फिर, सुबह जल्दी उठकर लेजर वैली पहुंचना था। पहले हमारा गंतव्य था सुखना लेक, फिर धूप निकल आने के कारण यकायक संदेश मिला कि आर्ट कॉलेज के सामने वाले ग्राउंड में पहुंचना है। यह जगह मेरे पसंदीदा स्थानों में से एक रही है। ऊंचे लंबे वृक्ष, शानदार मूर्तिशिल्प और हरियाली से घिरा यह एरिया दिन में युवाओं की चहल-पहल से भरा रहता है। अधिकतर तो यहां कारों एवं बाइक के शौकीन आते हैं। बाइक पर स्टंट करने वाले युवकों के अलावा सिटको के सिप एंड स्टेयर रेस्टोरेंट पर चाय और राजमा-चावल के शौकीनों का भी मजमा लगा रहता है। वैसे चंडीगढ़ के प्रसिद्ध गेड़ी रूट की शुरुआत इसी स्थान से होती है, जो लड़कियों के कॉलेजों और पंजाब यूनिवर्सिटी से होता हुआ एमसीएम गर्ल्स कॉलेज पर समाप्त होता है। दिन भर युवाओं की बाइक्स और कारें इस खास मार्ग पर सरसराती रहती हैं। 


चाय के समय तक हम कल वापस आ गये थे। बहुप्रतीक्षित फोटो शूट पूरा हो गया था। बल्कि एक नयी शुरुआत का पहला अध्याय हमने समाप्त कर लिया था। धन्यवाद उस छायाकार मित्र को जिसने मेरे एक आग्रह पर सुबह-सुबह यह प्रोजेक्ट अच्छे से पूरा कर दिया। लाइट, कैमरा, एक्शन और तस्वीरें। बेटी खुश थी। मैं भी। एक खुशी सुबह उठ कर लेजर वैली और बोगनविलिया गार्डन के अलग-अलग लोकेशंस पर जाने से भी मिली थी। वर्षों पहले मैं अक्सर घूमने के लिए इन्हीं स्थानों पर जाया करता था। चंडीगढ़ के पार्क और गार्डन्स सचमुच बड़े खूबसूरत और सजे-संवरे हैं। ऐसे ही नहीं कहा जाता इस शहर को सिटी ब्यूटीफुल।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बदायूं का पेड़ा जो छह महीने तक फ्रेश रहता है

शानदार रहा न्यूज इंडस्ट्री में 33 वर्षों का सफर

सोशल मीडिया पर रुतबा कायम रखना आसान नहीं