दिन और वर्ष नहीं, पल महत्वपूर्ण होते हैं

आधी सदी का गवाह हो गया हूं आज मैं। संभवत: हम 1964 या कहें कि 60 के दशक में जन्मे लोग किस्मत वाले हैं। हमने अविकसित भारत देखा। विकसित होता भारत देखा। और अब तकनीकी प्रगति से वाकिफ होते हुए गतिशील भारत हमारे सामने है। आने वाले कल को संवारने के कई मौके हमारे हाथों में हैं। हमने ऐसे बहुत सारे पल देखे, जिन्हें आज के टीनएजर बच्चे समझ ही नहीं पाएंगे। 

महाबोधि लद्दाख वाले गुरुजी भिक्खू संघसेना जी ने अपने एक ध्यान शिविर में बताया था कि जीवन को वर्षों में मापना उचित नहीं है। व्यक्ति की असली आयु तो उन पलों को जोड़ कर बनती है जो उसने मानव सेवा, प्राणी सेवा, प्रकृति सेवा और उपयोगी कार्यों में लगाये। जिंदगी का अधिकांश समय तो सोने, नित्य कर्म करने, भोजन और यात्रा करने में व्यतीत हो जाता है। इस व्यर्थ हुए समय को आयु में कैसे जोड़ सकते हैं आप। इस लिहाज से मेरी आयु शायद उन्नीस-बीस वर्ष ही बैठेगी। आप भी अपने उपयोगी पलों की गणना करके देखिए।

Sindhu Darshan, a few kilometers away from Leh in Ladakh (Jammu & Kashmir)

कुछ ही पलों पूर्व लखनऊ एयरपोर्ट से श्रद्धेय माधवकांत मिश्र जी (महामंडलेश्वर मार्तण्डपुरी) का फोन आया। मौसम की गड़बड़ी के चलते उनकी दिल्ली की उड़ान में विलंब था। कलकत्ता से वहां पहुंचे थे। बताने लगे कि राष्ट्रीय सहारा के अनेक साथियों से भेंट हुई। नब्बे के दशक में हम सबने मिल कर राष्ट्रीय सहारा को आकार दिया था। इस सिलसिले में मैं भी कुछ दिन लखनऊ में रहा था। मैंने जब मिश्र जी को उनके स्वस्थ व सुंदर जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं, तो प्रत्युत्तर में कहने लगे कि 'व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता। हर व्यक्ति एक समूह होता है। फेसबुक ने इस सामूहिक भावना को और अच्छे से जोडऩे का कार्य किया है। फेस मिलकर बुक बन जाते हैं।'

पीछे छूटे पलों को याद करता हूं तो तारीख या वर्ष याद नहीं आता, परंतु हरेक पल अच्छे से याद आता है। खास तौर पर बहुत खुशी या बहुत तकलीफ देने वाला हर पल। तकलीफों को याद करने से अच्छा है कि उनसे मिले सबक को याद रखा जाये। प्रत्येक हार हमें कुछ सिखा कर जाती है। हां, खुशी के पलों को संजोकर रखना एक अच्छी आदत कही जा सकती है। 

The blue sky in Ladakh during April month
आज सुबह फेसबुक खोला तो सबसे पहले परमार्थ निकेतन ऋषिकेश की सह-संचालक साध्वी भगवती सरस्वती की पोस्ट पर निगाह गयी। उनके साल भर के यादगार पलों को फेसबुक ने चित्रों की एक खूबसूरत एल्बम में पेश किया हुआ था। वहीं से प्रेरणा लेकर आगे मैंने भी कुछ चित्रों का संकलन करके अपनी एल्बम पोस्ट की। जीवन के चुनिंदा खूबसूरत पल हमें एक नयी ऊर्जा से भर देते हैं।  

ऋषिकेश में रात के समय गंगा में अठखेलियां करती रोशनियां, दिन के समय लद्दाख का झक नीला आसमान, शिमला में पहाड़ों के ऊपर तैरते धुंए जैसे बादल, मैक्लोडगंज के दलाई लामा मंदिर परिसर में बौद्ध भिक्षुओं का जोर-जोर से ताली बजा कर आपस में शास्त्रार्थ, धर्मशाला से दस किलोमीटर ऊपर त्रिउंड चोटी पर पहुंचते ही शुरू हुई ओलों की बरसात, चंडीगढ़ वाले घर में सिंगर मिका सिंह का अचानक से आगमन और हमारे बाथरूम में बालों को शैम्पू करना - ये सब वो पल हैं, जिनसे मिलकर पूरी होती है मेरे इस साल की तस्वीर।                                       

Contact: Narvijay Yadav, narvijayindia@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बदायूं का पेड़ा जो छह महीने तक फ्रेश रहता है

शानदार रहा न्यूज इंडस्ट्री में 33 वर्षों का सफर

सोशल मीडिया पर रुतबा कायम रखना आसान नहीं