वर्षा रानी जरा झूम के बरसो

बड़े दिनों के बाद बूंदाबांदी शुरू हुई है। किसानों से लेकर सरकार तक हर कहीं चिंता है। इस बार मानसून हल्का रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है। लक्षण भी ऐसे ही लग रहे हैं। आधा जुलाई निकल गया। इतने में तो कितनी ही बारिश हो चुकी होती। गांवों में किसान बारिश चाहते हैं तो शहरों में बारिश को सिरदर्दी माना जाता है। थोड़े से बादल और थोड़ी सी बारिश तो ठीक है, लेकिन ज्यादा वर्षा से कई शहरों की हालत बिगड़ जाती है। मुंबई तक बदहाल हो जाता है। हां, चंडीगढ़ जैसे आधुनिक और करीने से बसाये गये शहरों में सुकून है। 

चंडीगढ़ में अंडरग्राउंड सीवरेज है और सडक़ें चमाचम हैं। ली कारबूजिए की योजना के हिसाब से बसाये गये इस शहर को यूं ही सिटी ब्यूटीफुल नहीं कहा जाता। यहां सब कुछ खूबसूरत है। पार्क, सडक़ें, रोड किनारे खड़े पेड़, बाजार, सेक्टर सतारा, सुखना लेक और रॉक गार्डन - यहां सब कुछ सुकून भरा है। पतझड़ हो या बसंत, बारिश हो या धूप, हर किस्म के वृक्ष हैं चंडीगढ़ में। हर सेक्टर और सडक़ पर अलग किस्म के पेड़ मुस्कराते दिख जाएंगे यहां। 


बचपन में बारिश के जो मजे देखे वो अब कहां। तब भीगते हुए स्कूल से लौटते थे। कई कई दिनों तक बरसात रुकती ही नहीं थी। गावों में ऐसी लगातार होती बारिश को झर लगना कहते हैं। खुले आकाश में हम बिजली का चमकना और रात को इसका कडक़ना महसूस कर पाते थे। अब डब्बेनुमा कमरों और दफ्तरों के अंदर बरसात का पता ही नहीं चलता। 

एसी लगा हो तो खिड़कियां भी बंद रहती हैं। फिर कैसे आये बरसात का मजा। वो तो खुले में आता है। जैसे त्रिउंड पर्वत चोटी से नीचे उतरते वक्त शीतल अहसास हुआ था। धर्मशाला के पास धौलाधार पर्वत शृंखला में दस किलोमीटर ऊपर चोटी पर पहुंचे ही थे कि ओले गिरने लगे और लौटते वक्त भीगते हुए नीचे उतरे थे। कारों के अंदर और मकानों में कैद लोग क्या जानें बरसात का लुत्फ किसे कहते हैं। वो मजा तो सिर्फ बाइक, स्कूटर और साइकिलों पर ही मिल पाता है। 

Contact: Narvijay Yadav, narvijayindia@gmail.com

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